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Urdu Day के अवसर पर सजी मुशायरे की महफिल

विश्व उर्दू  दिवस के अवसर पर APJA URDU HIGH KALAM SCHOOL मे  सजी मुशायरे की महफिल 


अध्यक्ष: मेहताब अनवर

 विशिष्ट अतिथि: डॉ। मुहम्मद रियाज, प्रिंसिपल, करीम सिटी कॉलेज

 गेस्ट ऑफ ऑनर: डॉ। अजय मिश्रा

   तथा

 पिता सुरेश मिंज

 मॉडरेटर: सफ़ियुल्लाह सफ़ी

 साभार: मुहम्मद ताहिर

 निदेशक एपीजेए एच / स्कूल और इंटर कॉलेज।

 प्रबंधन में सहायता: डॉ। अफरोज शकील

 काव्य पाठ की शुरुआत में, गोहर अजीज ने उर्दू के प्रति समाज को आकर्षित करने की बात कही।

 विशिष्ट अतिथि ने कविता में भाग लेने वाले सभी कवियों की प्रशंसा की और विशेष रूप से कवियों की नई पीढ़ी के संबंध में अपनी संतुष्टि और खुशी व्यक्त की।  सभी कवियों को उनके हाथों से मोमेंटो दिया गया।

A.P.J.A Kalam Urdu High School  मे सजी मुशायरे की महफिल  जिसमे शायरों के कलाम इस तरह थे....


یہاں  ظلم و تشدد  کے  ہوئے  ہیں واقعے اتنے

کہ سب کے سب لگے ہیں بھائی چارے کو مٹانے میں 

           *سرفراز شاد*


ہر  سمت  برائی  کا  ہنر دیکھ رہا ہوں 

دیکھا نہیں جاتا ہے مگر دیکھ رہا ہوں 

            *صابر جمشیدپوری*


کتر دیا جسے تم نے خفا کی قینچی سے 

اسی کٹے پھٹے دامن کو سیا کرتے ہیں 

           *منظور عالم صابری*


ہر سمت اندھیرا ہے ہر موڑ پہ چیخیں ہیں 

معلوم نہیں کس نے کس کس سنبھالا ہے

           *ثقلین مشتاق*


ظلم کی کالی گھٹا آج نہ سر پر ہوتی

گرچہ دستار کا ظالم سے نہ سودا کرتے

           *شعیب اختر*


ساتھ آتی ہے تائمل کے لبوں تک باتیں

راز کہتے ہوئے ہمراز سے ڈر جاتے ہیں 

         *فرحان خان فرحان*


سانحے پر تو یہاں ڈال دیے ہیں پردے 

ظلم کے تیرے یہ اخبار گواہی دینگے

           *ولی اللہ ولی*


مرا  یہ  کام تو  ہی کر سکے گا

مجھے بدنام تو ہی کر سکے گا

                *اجئے مہتاب*



زندگی تو ایک قصہ تھی نہایت مختصر 

لکھ رہا ہے اب ہمارے درد کی تفسیر کون 

         *صفی اللہ صفیؔ*



مل کے ہندو مسلماں رہے امن سے 

گیت  انسانیت  کا  میں  گاتا  رہا

           *اشرف علی اشرف*


جال کانٹوں سے بنے تھے اور اس میں قید میں 

یہ عجب ماحول تھا سب غم جتانے آ گئے

           *ورون پربھات*


آنکھوں سے جو کہنا ہے ذرا سوچ کے کہنا

کیا اس پہ بھروسہ ہے ذرا سوچ کے کہنا

         *محشر حبیبی*


مزاج کے اتھل پتھل سے خود کا ہے ضیاں بہت

جو کرنا ہے وہ ایک بار دل میں ٹھان کیجئے 

       *ظفر اقبال رحمانی*


ہر ستمگر کی ہار ہوتی ہے

کب کوئی مہربان ٹوٹتا ہے

          *رضوان اورنگابادی*


کوئی عاشق کوئی منصف کوئی ایمان کا وارث

نہیں ہے تو ہے آخر کون جو تنہا دکھائی دے

          *پروفیسر گوہرغزیز*


وہ شخص مرا ہو کے بھی میرا نہ ہو سکا

مدت سے دل مرا تو اسی وسوسے میں ہے

              *مشتاق احزن*


برہنہ سوچ کے سائے میں رہو گے کب تک

خود نمائی سے نکل کر کبھی دنیا دیکھو

             *اثر بھاگلپوری*


بلند  رتبہ  لیاقت  سے  ہاتھ  آتا ہے

بڑھے گا قد نہیں ایڑیاں اٹھانے سے

            *مہتاب انور*

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